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Tuesday, April 11, 2017

लालच का अंकुर (कहानी) #ज़हन


वास्तु वन्य अभयारण्य की खासियत उसके तरह-तरह के पशु, पक्षी थे। इतने कम क्षेत्रफल में इतनी अधिक विविधता पर्यटकों को लुभाती थी क्योंकि उन्हें पता था कि यहाँ आने पर उन्हें कई जंगली और लुप्तप्राय जानवर ज़रूर दिखेंगे। वास्तु अभयारण्य की दुर्गम स्थिति और अच्छी सुरक्षा के कारण अभी तक यह स्थान तस्करों, शिकारियों से बचा हुआ था। अभयारण्य के पास ही हाथी-महावतों की बस्ती थी जो पर्यटकों और वन अधिकारीयों को अनुज्ञप्त जंगली क्षेत्र में घुमाते थे। 12 महीने मेहनत के बाद भी मुश्किल से सभी महावत परिवारों का गुज़ारा चलता था। अपने पशु साथियों से महावतों का प्रेम ऐसा था कि चाहे अपने लिए कुछ कम पड़ जाए पर हाथियों को कोई कमी नहीं होनी चाहिए। एक बार किसी महावत ने लालचवश हाथीदांत के लिए तस्कर से संपर्क किया, जब यह बात बस्ती में फैली तो उसे वन अधिकारीयों के हवाले कर दिया गया और उसके परिवार को बस्ती से निकाल दिया गया। 

बस्ती का कोई मुखिया नहीं था पर 2-3 वृद्ध महावतों की बात सब मानते थे, जिनमे से एक का नाम था सुमंकुट्टी। जंगल में कुछ चेक पोस्ट्स का निर्माण कार्य चल रहा था, जिसके शोर से उनके 2 हाथी भटक गए और उनमे से एक का शरीर बिजली के तार से छू गया। तेज़ करंट लगने से वो हाथी मरणासन्न अवस्था में पहुँच गया। उसके चारो ओर बैठे डेढ़ दर्जन महावत और उनके परिवार शोक में डूबे थे। कुछ देर बाद सुमंकुट्टी के लड़के सूर्यकुट्टी ने उनके कान मे कुछ कहा। अपने लड़के की बात सुनकर वो आगबबूला हो गए और छड़ी से सूर्यकुट्टी की पिटाई करने लगे। लोगो के पूछने पर उन्होंने बताया कि उनका पुत्र मरने वाले हाथी के दांत तस्करो को बेचने की बात कर रहा है ताकि कुछ पैसे आ सकें। 

अपने संगी-साथियों की शंका भरी नज़रों को भांप कर सुमंकुट्टी बोले, "आप लोगो ने पहले इक्का-दुक्का हाथीयों के मरने पर भी ऐसे सवाल किये हैं कि जब हाथी मर गया तो उसके दांत को बेचें या ना बेचें क्या फर्क पड़ता है, जो तब मैंने टाल दिए या सही से सबको समझा नहीं पाया। बात मृत हाथी या जीवित हाथी की नहीं है। एक बार तस्कर उद्योग रुपी शेर के मुँह में खून लग गया तो हमारे हाथी और यह पूरा अभयारण्य उनकी नज़र में आ जाएगा, वो नये हथकंडे, लालच लेकर आयेंगे और फिर यह वास्तु पशु विहार केवल नाम का अभयारण्य रह जाएगा...हमारे अलावा सरकार क्या करती है उसपर हमारा बस नहीं पर अपने से जितना ज़्यादा हो सके उतना अच्छा इसलिए लालच का अंकुर फूटने से पहले ही बीज हटाना बेहतर है। "

समाप्त!

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Other Titles: अन-अंकुरित, अन-अंकुरण 
Read कुपोषित संस्कार (कटाक्ष)
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