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Wednesday, December 28, 2016

नशेड़ी औरत (कविता)


कितने चेहरो में एक वो चेहरा था…
नशे में एक औरत ने कभी श्मशान का पता पूछा था…
आँखों की रौनक जाने कहाँ दे आई वो,
लड़खड़ाकर भी ठीक होने के जतन कर रही थी जो। 
किस गम को शराब में गला रही वो,
आँसू लिए मुस्कुरा रही थी जो।

अपनी शिकन देखने से डरता हूँ,
इस बेचारी को किस हक़ से समझाऊं?
झूठे रोष में उसे झिड़क दिया,
नज़रे चुराकर आगे बढ़ गया।

आज फिर मेरा रास्ता रोके अपना रास्ता पूछ रही है….
ठीक कपड़ो को फिर ठीक कर रही है….
हिचकियां नशे की,
पगली कहीं की!

“क्या मिलता है नशे में?”

“उसे रोज़ बुलाती,
थक जाने तक चिल्लाती, 
नशे में वो मर गया, 
मेरा जी खाली कर गया। 
पीकर आवाज़ लगाने पर आता है,
मन भरने तक बतियाता है,
अब आप जाओ साहब!
मेरा पराये मरद से बात करना उसे नहीं भाता है।”

 - मोहित शर्मा ज़हन