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Wednesday, March 4, 2015

झूठ की नोक पर बंदी भारत - मोहित शर्मा (ज़हन)


Note - वैसे तो आर्टिकल में मीडिया की आलोचना है पर आशय मुख्यधारा, बहुसंख्य मीडिया से है। इस क्षेत्र में भी हर जगह की तरह अच्छे, ईमानदार लोग, संस्थायें भी है। 

क्या भारत दुनिया के सबसे अच्छे राष्ट्रों में है? नहीं! क्या भारत दुनिया के सबसे बुरे देशो में है? नहीं! भारत लगभग हर पक्ष में कहीं बीच में है। तकनीक, पर्यटन, विकास, खेल, अपराध सब में। फिर कैसे हमे हिंसक अपराधो, महिला के विरुद्ध अपराधों, घोटालो जैसे मुद्दों में सबसे शीर्ष पर आ जाते है? कैसे पूरे विश्व की कैपिटल बन जाते है इन आपराधिक, अनैतिक मामलो में? मैं मानता हूँ कि अपराध से, बुराई से लड़ाई तेज़ होनी चाहिए और भारत में बहुत से सुधारों की आवश्यकता है पर हर पक्ष में योजनाबद्ध तरीके से, "कोसनाबद्ध" तरीके से नहीं। 

भारतीय मीडिया के बहुसंख्य हिस्से में एक ट्रेंड चला है पिछले कुछ वर्षो से जो मुझे चिंतित कर रहा है। हैरतअंगेज, होश उड़ा देने वाली, घृणित कर देने वाली ख़बरों को वरीयता 
देना। साथ ही देश और उस से जुडी बातों को कोसना। बाकी नियमित स्तर पर इतने विशाल देश से आयी सामान्य-अच्छी ख़बरें, उपलब्धियाँ इन "चौंका" देने वाले खुलासों में कहीं खो जाती है। परेशानी यहीं ख़त्म नहीं होती अक्सर घटनाओं से अधिक कवरेज बड़े लोगों के बयानों को मिलती है की फलाना ने फलाना बोलकर फलाना मानसिकता दर्शायी। देश में विचारों को व्यक्त करने की आज़ादी है और अगर वो बयान किसी के प्रति हिंसा नहीं फैला रहे (जो अधिकतर होता है) तो आप क्यों ठेकेदार बन रहे हो किसी के एक बयान के बल पर उसका पूरा व्यक्तित्व नापने वाले? आप जो खुद कॉर्पोरेट्स आदि निजी हितों से प्रायोजित ख़बरें दिखाते फिरते हो। वह भी एक इंसान है और कम से कम असली इंसान की हर मामले में नपी-तुली राय हो ही नहीं सकती। 

दूसरी बात जो मैं अक्सर दोहराता हूँ की लगभग 130 करोड़ के देश मे दशमलव प्रतिशत अपराध भी बाकी छोटे देशो के मुकाबले बड़े लगेंगे पर इसका मतलब यह नहीं की अपराधों के मामले में भारत पहले नंबर पर है। दुनिया के 200 कुछ देशों में अपराध दर में भारत कहीं बीच में है, 147 देशो के उपलब्ध डाटा में भारत का स्थान 72वां था, अगर सभी देशो से रिकार्ड्स आते तो भारत 100 की संख्या पार कर जाता, यानी भारत से अधिक अपराध दर वाले दर्जनो देश है। पर खबर पहले दिखाने का, सेन्शेसनलाइज़ करने का ऐसा भूत सवार है न्यूज़ चैनल्स, प्रिंट न्यूज़ मीडिया को कि ख़बरें वेरीफाई करना तो दूर, ख़बरें ईजाद तक कर दी जाती है। दिक्कत खबरें देने से नहीं है, दिक्कत है एक आपातकाल, मुसीबत का माहौल दिखाते रहने कि है। जिस से आम जन में पूर्वाग्रह बनने के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक असर बैठता है, देश और लोगो के लिए हिकारत की भावना आती है की "मैं तो अच्छा/अच्छी हूँ, दुनिया बुरी है, और ऐसे लोग के साथ ऐसा ही होना चाहिए।" तो पहली बात देश, समाज उतना बुरा नहीं है जितना समय के साथ आपके मन में बैठा दिया गया है। हमारे विशालकाय देश का 2-3 प्रतिशत ही ऑस्ट्रेलिया की जनसँख्या से अधिक है, बाकी आप खुद समझदार है। तो अगली बार कोई संख्या देख कर पूरी जाँच कीजिये हल्ला काटने से पहले। 

अब इस एमरजेंसी के माहौल का पहला नुक्सान विदेशों में यह ट्रेंड कम है तो जब कोई देश खुद ही अपनी खिल्ली उड़ाए तो कंटेंट और वैरायटी के लिए यहाँ का "कोसना" वहाँ स्थानांतरित हो जाता है। तभी जिन देशो में भारत से ऊँची अपराध दर है वो तक हमारे ऊपर डॉक्यूमैंटरीज़, स्टोरीज, कार्टून्स, न्यूज़ रिपोर्ट्स दिखा कर अपनी जनता का ध्यान बँटाकर, अपनी सरकाओं की मदद करते है। 

दूसरा घाटा...कानून, संविधान, नीतियों के गलत बनने से होता है क्योकि समय के साथ लगातार ऐसी ख़बरों से गलत दबाव बनता है सिस्टम पर। फिर जल्दबाज़ी में गठित कानून, संवैधानिक बदलाव एक बड़े वर्ग को नुक्सान पहुँचाने लगते है। साथ ही वर्गों, स्थानो, लोगो के बीच पूर्वाग्रह, नकारात्मक वर्गीकरण बढ़ने लगता है I जिसमे वो अधपकी, अधूरी जानकारी के आधार पर फैसला सुनाकर पब्लिक ट्रायल से दबाव बनाते है। 

पर प्रोपोगंडा नहीं होगा, हल्ला नहीं होगा तो चैनल्स को दर्शक, विज्ञापन और स्पोंसर्स कैसे मिलेंगे? कागज़ पर चलने वाली या खानापूर्ति को स्टोर रूम में ऑफिस खोले हज़ारो स्वयंसेवी संस्थाओं को जनता, सरकार और विदेशी डोनेशन, ग्रांट्स कैसे मिलेंगी? विनती कुछ गलत होने पर हल्ला ना करने की नहीं है, बल्कि जितनी बात है उस स्तर का हल्ला करने की है। अपराध, अनैतिकता के खिलाफ आवाज़ और एक्शन दोनों ज़रूरी है पर कायदे में। अपने प्रतिद्वंदीयों को हराने की होड़ में देश की छवि तो धूमिल ना करें। मुझे गर्व है कि मैं समृद्ध विरासत वाले विविध देश भारत का नागरिक हूँ और सामान्य जीवन जीने वाले उन देशवासियों कि मेजोरिटी का हिस्सा हूँ जो खबरों के मामले में आपके मानको पर बोरिंग बैठते है, पर उनको दिखाये बिना भारत में त्राहि-त्राहि की तस्वीर दुनिया पर प्रोजेक्ट करना मेरे लिए किसी जघन्य अपराध से कम नहीं क्योकि क्योकि एक भारतीय होने पर गर्व की बात या भारत से जुडी कोई भी बात जिसमे अपराध का ज़िक्र ना हो सुनते ही बिना आगे कुछ सुने लोग हँसने लगते है या मुँह मोड़ लेते है। बाकी चीज़ों में तो पता नहीं पर देश को कोसने और हल्ला काटने में हम नंबर एक है। 

- मोहित शर्मा (ज़हन) #mohitness #mohitsharma #mohit_trendster