...is "Celebrating (un)Common Creativity!" Fan fiction, artworks, extreme genres & smashing the formal "Fourth wall"...Join the revolution!!! - Mohit Trendster

Sunday, April 28, 2013

नकलची समाज (भाग - 2)

नक़ल आज के दौर में विकराल रूप ले चुकी है, समाज में इतनी रच बस चुकी है कि अब इसे लोगो ने स्वीकार कर लिया है। किसी को बताया जाए कि भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए भेजी गयी एंट्री "बर्फी" में 3 दर्जन से अधिक फिल्मो के दृश्य जस के तस दिखाए गए थे दूसरे कलाकारों पर फिल्माने के बाद तो वो कहता है की कोई बात नहीं हमे तो मज़ा आने से मतलब है और इस्सी मानसिकता का फायदा फिल्मो, लेखन में ही नहीं विभिन्न माध्यमो पर लोग उठाते है। मै चौंक जाता हूँ की खुले आम नक़ल के बाद लोग प्रमोशंस, साक्षात्कार, आदि के दौरान इतने आत्मविश्वास से कैसे कह लेते है कि ये एक अलग काम है, हटकर है।

संयोग से कहानी का कुछ हिस्सा कहीं पहले लिखी रचना से मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं, ऐसे केसों में रचनाओ को देख कर पता चल जाता है की ये संयोग है कॉपी नहीं, और ऐसी रचनाओं से मुझे कोई आपत्ति नहीं है, ये रचनाएँ खुद मे नयी और अलग है। मेरी कुछ रचनाएँ ऐसे सामाजिक मुद्दों पर लिखी गयी थी जिन मुद्दों पर आगे चलकर कुछ सालो बाद फ़िल्में, नाटक, आदि बने जो बहुत से लोगो तक पहुंचे पर मेरी रचनाएँ संयोग से उन मुद्दों पर होते हुए भी काफी अलग थी। कई लेखक या कवियों से मिला हूँ और काफी बातें की है। वो अक्सर बाहरी देशो की तरफ देखते है, विदेशी फ़िल्में, कॉमिक्स, गेम्स, किताबें, विडियोज़ देखने मे अपना काफी समय व्यतीत करते है। फिर उनके अनुसार ही अपनी रचनाएँ बनाते है।

जनता की मांग का हवाला देकर प्रकाशक ऐसा करते है। पर एक समय मे अगर बड़े प्रकाशक नया काम छापें तो लोगो के पास वही ऑप्शन होते है। कुछ पेशेवर लेखक या कवि कहते है उन्हें उनका परिवार पालना है इसलिए सीधी चोरी करते है पर जब आपमें क्षमता ही नहीं थी तो लेखन मे आये ही क्यों? नक़ल बस एक शॉर्टकट है नया, अलग काम करने मे समय लगता है जबकि कहीं से उठाया गया कांसेप्ट जल्दी पूरा हो जाता है, इस वजह से एक लेखक अगर नक़ल से साल मे 10-15 या ज्यादा किताबें पूरी कर पायेगा वहीँ बिना नक़ल किये अपनी क्षमता से वो 5-10 किताबें लिख पायेगा। पर अगर वो दूसरे माध्यमो पर से अपनी निर्भरता हटाये और मेहनत करे तो ये संख्या बढ़ सकती है, दुर्भाग्यवश ऐसा करते ना के बराबर लोग है।

कई लेखकों का भाग्य अच्छा है की जहाँ से वो अपना काम उठाते है वो मेटर आम जनता (जहाँ उनका काम बिकता है) में इतना लोकप्रिय नहीं है और उनकी गाडी सालो तक चलती रहती है। लोग कहते है कि वो महान है तभी तो इतने साल काम किया जबकि इतने सालो मे "असली" काम साहब ने गाहे-बगाहे मूड बदलने को किया होगा। चलिए पैसे और परिवार चलाने जैसे इमोशनल चोचले मान भी लें तो जिस कांफिडेंस के साथ कुछ बड़े, "अनुभवी" लेखक चोरी करने के बाद हज़रो-लाखो लोगों द्वारा अपना अभिनंदन, तारीफ़ स्वीकार करते है तो घृणा होती है इनसे। चलो काम का प्रोमोशन कर लो, अपना काम बेच लो पर जिस से चुराया है उसके सम्मान में कम से कम अपना कुत्ते की तरह प्रोमोशन तो मत करो हो सके तो असल सोर्स लिख दो काम की (ये तो करना यहाँ निषिद्ध मानते है लोग)। कहावत है की सच्चाई, कल्पना से अधिक अजीब होती है .....असल समाज से प्रेरणा लो, सच्चाई से कल्पना बनाओ, अनछुई बातें और पैटर्न ढूँढो, नए काल्पनिक समीकरण बनाओ। अगर प्रकाशक का आप पर इतना प्रेशर है तो उसके हिसाब से काम कर दो पर बीच में "अपना" काम भी दिखाओ .....अगर ऐसा नहीं कर सकते तो खुद को कलाकार, रचनाकार मत कहो। शायद यही कारण है जो मुझे ऐसे कलाकार बहुत कम मिलते है जिन्हें अपनी कला से प्रेम हो और जो अपनी कला के प्रति इमानदार हों। मेरा निवेदन है पाठको, दर्शको यानी आम लोगो से कि कला को प्रोत्साहन दीजिये पर चोरी को नहीं क्योकि कहीं न कहीं आपका प्रोत्साहन और खर्च किया हुआ पैसा ही है जो कलाकारों को चोरी की लथ लगवा देता है।

- Mohit Sharma ( Trendster)

Wednesday, April 24, 2013

नकलची समाज (भाग - 1)

नकलची समाज (भाग - 1)



रचनात्मक कार्यो में मुझे नक़ल से सख्त नफरत है और ये बात मैंने पहले भी अपनी रचनाओ, लेखों में रखी है। मेरे कुछ अच्छे दोस्तों ने मुझसे कहा कि उन्हें नक़ल/चीटिंग का मतलब समझाऊँ। तो इन दो लेखों से समझाने की कोशिश करता हूँ, पहली कड़ी आज लिख रहा हूँ।

नक़ल करने का अर्थ है किसी कि रचना को उठा कर अपने तरीके से कर देन। सब तो बैठे-बिठाये मिल गया, एक रचना से जुड़ीं जो महत्वपूर्ण बातें है वो तो आपने की ही नहीं तो आप सच्चे रचनाकार कहाँ हुआ, आप एक तरह से अच्छे प्रबंधक, संपादक कहे जा सकते है पर रचनाकार नहीं। मै यहाँ लेखन के क्षेत्र से उदाहरण दूंगा जो दूसरे पेशों पर भी लागू होतें है, अधिकतर लोकप्रिय रचनाओ  कि बेशर्मी से चोरी की जाती है क्योकि लेखक और प्रकाशक सोचते है कि ऐसा करना एक सुरक्षित निवेश का निर्णय है क्योकि दूसरे देशो के पाठक वैसी कहानियों को सराह चुके है तो यहाँ भी उनकी स्वीकृति की गुंजाइश बढ़ जाती है। एक गलत धारणा ये भी रहती है मन मे की इतनी बड़ी दुनिया मे हर तरह की चीज़ लिखी जा चुकी है, की जा चुकी है  तो अब कुछ भी नया या ओरिजनल नहीं बनाया जा सकता।

आप अगर गौर करें तो हर किताब, फिल्म में घटनाओं का क्रम, कहानी का फ्लो आदि अलग रहता है और कुछ संवाद, घटना अलग रहती है पर मुख्य कहानी का आईडिया नक़ल रहता है, अगर इतनी ही मजबूरी और दबाव है हमे एक फिल्म में कुछ अलग सीन्स और संवाद की जगह पूरी फिल्म को नए संवाद और अलग सीन्स देने की कोशिश करनी चाहिए और कहानी को छोटी-छोटी इकाइयों मे बांट कर देखना चाहिए की वो कुछ नयी और अलग लग रही है या नहीं।

अब देता हूँ कॉपी या नक़ल पर अपना निष्कर्ष, बात नया काम करने कि तो बाद में आती है पर आपका काम और कहानी में वर्णित घटनाएँ अब तक आयीं रचनाओं से अलग तो हों, पाठको को लगे तो सही की आपने मेहनत कि है। अगर आपकी कहानी पढ़ते हुए दिमाग में कोई विदेशी कॉमिक, किताब, सीरियल, फिल्म आ जाए तो ये बेशर्मी से की गयी नक़ल है।  आप सुरक्षित खेल रहे हो (और अपना समय, धन बचाना चाहते हो) पर लम्बे समय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने के लिए अपने अलग पहचान चिन्ह होना ज़रूरी है, कुछ लोग तो हद ही कर देते है जो ओरिजिनल कहानी का क्रम तक ज्यूं का त्यूं रखते है। ये बहाना देना कि अलग कहानियों को पाठक पसंद नहीं करेंगे तो यह आपकी भूल है, विश्व में कई ऐसे प्रकाशक है जो लगातार अलग काम कर रहे है और सफल है। 

ये एक बहुत बड़ी चोरी है पर विडंबना यह है कि इस अपराध की कोई सज़ा नहीं है, और जिस देश में बड़ी सज़ा वाले अपराधो की संख्या इतनी अधिक है उसमे बिना सज़ा वाले अपराध की क्या औकात होगी? नए वाकये, लोग, बातें यहीं हमारे सामने है बस उन्हें महसूस कर पहचानने की ज़रुरत है। पेशेवर लेखकों, कवियों पर अगले लेख में प्रकाश डालूँगा अभी शौकिया चोरों की हरकतें देखते है। इंटरनेट की अनंत दुनिया का फायदा उठा कर कुछ लोग बड़ी शान से दूसरो के काम को अपना नाम दे देते है (कभी कबार अपने दोस्तों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ लोग ऐसा करते है और कभी-कभी ऐसा करना चल जाता है पर लगातार हर दूसरे-तीसरे दिन आदतवश  नहीं), फिर ये आदत बन जाती है, ज़रा सी तारीफ़ के लिए झूठे दावे किये जाते है और नक़ल का स्तर बढ़ जाता है। धीरे-धीरे इनके बिना कुछ किये इनके हजारो-लाखों प्रशंषक बन जाते है और तब ये लोग पीछे न हटने वाली स्थिति में आ जाते है। और जिन कलाकारों का काम चोरी किया जाता है वो नेट के किन्ही छोटे से कोनो में लोगो कि प्रतिक्रिया के लिए तरसते रह जाते है। आप अपना समय और मेहनत किसी और काम में लगा सकते है। 1-2 साल बाद कोई महान हस्ती आपकी इस नक़ल कि समीक्षा नहीं करने वाली, कोई विकिपीडिया पेज नहीं बनने वाला आपका ऐसा करके। तो यही निवेदन है की आज आज से ही नक़ल को तौबा कीजिये क्योकि अपने देश में पहले से ही बहुत से फ्री की खाने वाले प्रीतम, बप्पी लहरी जैसे लोगो की फ़ौज पड़ी है।
.............क्रमशः

- मोहित शर्मा (ट्रेंडी बाबा)